Sunday 23 October 2011

लघु कथा

अछूत

रामलो जाट गाव रो एक नम्बर रो रुलेट, इण री हर रात न्यारी जगे, कदाई कठे -कदाई कठे !
आज वो सासी बस्ती री सिरमी रो मिजमान हो, सिरमी उण रे खेत माथे मजूरी करे, आज ईज मजूरी मान्गी ही वा !
रामलो सुबे सुबे रात काळी कर घर कानी जावे हो, ईत्ता मे ईज सिरमी री छोरी साईकल सिखता थका रामले रे माय पड्गी, रामलो उण ने गाळ काढता थका बोल्यो-" हट रान्ड अछूतणी, हेन्ग भ्रस्ट कर दियो "!!!!




साच अर मसखरी



आज जोधपुर सु हनुमानगढ जाता बगत रेलवे टेशण रे बारे एक बाबो रोवतो कुका करतो दिस्यो !! म्है उण ने पुछयो बाबा क्यू रोवे ? उण जोर जोर स्यू रोता रोता केयो- " अन्ना री टीम बिखरगी, म्हाणी आस बिखरगी ?", हू उण ने कैयो-" रे बावळा थू अन्ना ने जाणे - कुण है? कठे है ?"
बाबो सामी लगोडो स्टीकर दिखावतो बोल्यो - ओ अन्ना !
व्हा रे बाबा, व्हा रे अन्ना, जै हो मिडिया थारी !
म्है उण ने केयो - रे बाबा थू प्रधानमन्त्री ने जाणे, कुण है ?
उण तपाक पडुत्तर दिनो- सोनिया !
म्हे मूडो पिलकायो- ओ बाबो मसखरी करे, जाणे कोनी क जाण अर करे !!
मसखरी के साच , उलझियोडो मे ट्रेन कानी पग मेल दिया !!!

Tuesday 15 March 2011

मुट्ठी भर सपना

केई बार
जद आप म्हारे दोळे व्हिया,
म्हे,
म्हारी मुट्ठी आभे सामी ताण,
आप सामी उभो व्हियो,
श्रीमान,
म्हारी आ कोसिस,
आपने हरावन के, डरावन सारु नी ही
आ तो ही फकत, की बचावन सारु ,
क्योक,
इन मुट्ठी में इज तो बंद है ,
म्हारा मुट्ठी भर सुपना
म्हारो बैत भर आकास !

कुण अर कठै

मून तोड़
सून सूं आंवती आवाजां
आभै गूंजता नारा
सागै होवण री घोसणा
अर नारा री आवाज सूं तेज
उण भरी हुंकार
बधग्यौ आगै, घणौ आगै
पीढ्यां री पीड़
झुकाय दी कमर
उम्मीदां रो बोझो
लड़खडायदियो पगां नै
पण सुपनां
लगोलग देंवता रैया धक्को
अर वो बावळो
कटतै पाण भी ल।दतो रैयो
नीं करी परवा, ताजै घावां री
पण आवाजां
सून में बेवण लागी मून धारलियो
अर नारा
कांई ठा कठै सूं आया कठै गया
खर खर री आवाजां व्ही
घाटी न्यारी व्हैय पड़गी नीचै
धीर आंख्यां जोयो लारै
लारै रैया फगत
सून अर मून
कुण हा वै
किण सारू हा
अर अबै है कठै ??

बैत भर आकास

भीड़,
दिनो-दिन बधती भीड़
रोजीनां,
इण भीड़ मांय बध जावै सैंकड़ूं नुवां चैरा
पण फेरू भी
म्हैं
खुद नै इण भीड़ बिचाळै घणौ एकलौ समझूं
रोजीना करूं, म्हैं कोसिस
खुद नै इण भीड़ सूं न्यारौ करण री
अर इण भीड़ स्यूं न्यारौ व्हैय
पंख्यां पसार आभै में उडण री ।
पण
हर बार,
एक वजनदार हाथ रै जोरदार धक्कै सूं
म्हैं फेरू इण भीड़ भेळो कर दियो जावूं
तद देखूं
कै भीड़ फेरू कीं बधगी है ।
अर
आगै निकळ गिया फेरू कीं लांठा लोग
अर म्हैं पूगगौ पैली सूं भी लारै, घणौ लारै ।
पण
बार-बार, हर बार
उण धक्कै देवणियै हाथ नै म्हैं कैवूं
कै नीं चाइजै म्हनै उडण सारू लम्बो-चौड़ौ आकास
बस म्हनै दे द्यो इत्तो ई
जिण में लेय सकूं सांस
राखौ ओ थांरौ पूरौ आभौ
अर राखौ पग पसारण सारू, आ सगळी उपजाऊ धरती
म्हरै सारू
म्हैं खुद जोय लेवूंला
म्हरौ
बैत भर आकास ।